मुमकिन हो आपसे तो भुला दीजिये मुझे,
पत्थर पे हूँ लकीर, मिटा दीजिये मुझे,
हर रोज़ मुझसे ताज़ा शिकायत है आपको,
गिला शिकवा स्टेटस
तक़दीर के लिखे पर कभी शिक़वा न किया कर ऐ इंसान,
तू इतना अक़्लमंद नहीं जो भगवान के इरादे समझ सके।
शिकवा तो बहुत है मगर शिकायत नहीं कर सकते,
मेरे होठों को इजाजत नहीं तेरे खिलाफ बोलने की।
वो किसी को याद करके मुस्कुराया था उधर
और मैं नादान ये समझा कि मेरा हुआ
मंजिलें हमारे करीब से गुजरती गई जनाब
और हम और हम को रास्ता दिखाने में रह गए
जिंदगी से शिकायत शायरी
दिल से दूर जिन्हें हम कर ना सके;
पास भी उन्हें हम कभी पा ना सके;
मिटा दिया प्यार जिसने हमारे दिल से;
हम उनका नाम लिख कर भी मिटा ना सके।
शिकवा नहीं किसी से शायरी
मैंने रब से कहा वो छोड़ के चली गई;
पता नहीं उसकी क्या मजबूरी थी;
रब ने कहा इसमें उसका कोई कसूर नहीं;
यह कहानी तो मैंने लिखी ही अधूरी थी।
नींद से क्या शिकवा जो आती नही रात भर,
कसुर तो उन सपनों का है जो सोने नही देते…
अब ना कोई शिकवा, ना गिला, ना कोई मलाल रहा,
सितम तेरे भी बे-हिसाब रहें, सब्र मेरा भी कमाल रहा…
कैसे कहें कि तुझ को भी हम से है वास्ता कोई तू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया
ग़ैरों से कहा तुम ने ग़ैरों से सुना तुम ने कुछ हम से कहा होता कुछ हम से सुना होता
जरा सा तुम बदल जाते, जरा सा हम बदल जाते,
तो मुमकिन था ये रिश्ते किसी साँचे में ढल जाते।
पत्थर हूँ मैं... चलो मान लिया मैंने,
तुम तो हुनरमंद थे तराशा क्यूँ नहीं?
इश्क़ में कोई किसी का दिल तोड़ जाता है,
दोस्ती में कोई दोस्त का भरोसा तोड़ जाता है,
ज़िंदगी जीना तो कोई उस गुलाब से सीखे,
जो खुद टूटकर दो दिलों को जोड़ जाता है।
जब गिला शिकवा अपनों से हो तो खामोशी ही भली,
अब हर बात पे जंग हो यह जरूरी तो नहीं।
न गिला है कोई हालात से, न शिकायेतें किसी की जात से...
खुद से सारे लफ्ज जुदा हो रहे हैं मेरी ज़िन्दगी की किताब से।
दिल टूटने पर भी जो शख्स,
शिकायत भी न करे,
उस शख्स की मोहब्बत में
कमियां न निकाला कर।
एक तुम हि ना मिल सके
वरना मिलने वाले तो बिछड़ बिछड़ के मिले
तुझे मोहब्बत करना नहीं आता;
मुझे मोहब्बत के सिवा कुछ आता नहीं;
ज़िंदगी गुज़ारने के दो ही तरीके हैं;
एक तुझे नहीं आता, एक मुझे नहीं आता!
कोई जुदा हो गया कोई ख़फ़ा हो गया;
यह दुनिया के लोगों को क्या हो गया;
जिस सजदे में मुझे उस को माँगना था रब से;
अफ़सोस वही सजदा क़ज़ा हो गया।
माँ बाप के बिना जिन्दगी अधूरी हैं,
माँ अगर धूप से बचाने वाली छाँव हैं,
तो पिता ठंडी हवा का वह झोका हैं,
जो चेहरे से शिकवा की बूंदों को सोख लेता हैं…
रात आ कर गुज़र भी जाती है
इक हमारी सहर नहीं होती
जिन्दगी से तो खैर शिकवा था
फिर भी मौत ने बहुत तरसाया।
चाँद से शिकायत करूँ किसकी
हर कोई यहाँ रात का मुसाफ़िर है
क्या गिला करें उनकी बातों का,
क्या शिक़वा करें उन रातों से,
कहें भला किसकी खता इसे हम,
इश्क़ में कोई किसी का दिल तोड़ जाता है,
दोस्ती में कोई दोस्त का भरोसा तोड़ जाता है,
ज़िंदगी जीना तो कोई उस गुलाब से सीखे,
जो खुद टूटकर दो दिलों को जोड़ जाता है।
वहाँ तक चले चलो
जहाँ तक साथ मुमकिन है,
जहाँ हालात बदलेंगे
तू होश में थी फिर भी
हमें पहचान न पायी,
एक हम हैं के पीकर भी
तू हकीकत-ए-इश्क है या कोई फरेब,
ज़िन्दगी में आती नहीं खाव्बों से जाती नहीं।
तकदीर ने जैसे चाहा वैसे ढल गए हम,
बहुत सभल कर चले फिर भी फिसल गए हम,
किसी ने यकीन तोड़ा तो किसी ने हमारा दिल,
और लोगों को लगता है बदल गए हम।
एक तुम हि ना मिल सके
वरना मिलने वाले तो बिछड़ बिछड़ के मिले
शिकायतों की पाई पाई जोड़ कर रखी थी मैंने
उसने गले लगाकर सारा हिसाब बिगाड़ दिया
सपना हैं आँखों में मगर नींद नहीं है;
दिल तो है जिस्म में मगर धड़कन नहीं है;
कैसे बयाँ करें हम अपना हाल-ए-दिल;
जी तो रहें हैं मगर ये ज़िंदगी नहीं है।
तलाशी मेरे हाथों की लेकर क्या पा लोगे तुम,
चंद लकीरों में छिपे अधूरे से कुछ किस्से हैं…
शिक़वा वो भी करते हैं शिकायत हम भी करते हैं,
मुहोब्बत वो भी करते हैं मुहोब्बत हम भी करते हैं…
जाने किस बात की उनको शिकायत है मुझसे,
नाम तक जिनका नहीं मेरे अफ़साने में।
चाँद उतरा था हमारे आँगन में
ये सितारों को गंवारा ना हुआ
हम भी सितारों से क्या गिला करें
जब चाँद ही हमारा ना हुआ
जब प्यार नहीं है तो भुला क्यों नहीं देते;
ख़त किसलिए रखे हैं जला क्यों नहीं देते;
किस वास्ते लिखा है हथेली पे मेरा नाम;
मैं हर्फ़ ग़लत हूँ तो मिटा क्यों नहीं देते
उनकी निगाहें कुछ ऐसे शरारत करतीं हैं,
जुल्फे भी हाय कयामत करती हैं,
हम चाहकर भी उनसे नजरे हटा नहीं पते,
फिर भी शिकायत वो मेरी नज़रों से करतीं है…
इंतज़ार करते करते वक़्त क्यों गुजरता नहीं!
सब हैं यहाँ मगर कोई अपना नहीं!
दूर नहीं पर फिर भी वो पास नहीं!
है दिल में कहीं पर आँखों से दूर कहीं!
नज़र चाहती है दीदार करना;
दिल चाहता है प्यार करना;
क्या बतायें इस दिल का आलम;
नसीब में लिखा है इंतजार करना!
उनकी निगाहें कुछ ऐसे शरारत करतीं हैं,
जुल्फे भी हाय कयामत करती हैं,
हम चाहकर भी उनसे नजरे हटा नहीं पते,
फिर भी शिकायत वो मेरी नज़रों से करतीं है…
जब गिला शिकवा अपनों से हो तो खामोशी ही भली,
अब हर बात पे जंग हो यह जरूरी तो नहीं।